रामायण में वर्णित शिक्षा-व्यवस्था
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Abstract
सभ्यता एवं संस्कृति के सम्यक् प्रसार तथा विकास के लिए एवं वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति के लिए शिक्षा नितान्त आवश्यक है| मनुष्य जीवन में शिक्षा का सर्वाधिक महत्त्व है| चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास, कर्त्तव्य भावना की जागृति, प्राचीन साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए शिक्षा की आवश्यकता है|
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References
वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, 6.14
व्यास, शान्तिकुमार नानूराम, रामायणकालीन संस्कृति, पृ. 18
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अयो. 23.15-19
बाल. 14.19
सुन्दरकाण्ड, 36.2
युद्ध. 64.25
युद्ध. 105.13, बाल. 14.43, 15.2 – होता, अध्वर्यु, उद्गाता एवं ब्रह्मा नामों से चारों वेदों का ग्रहण |