राष्ट्रीय एकता में क्षेत्रीय साहित्य की भूमिकाः (हरियाणा के संदर्भ में)
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Abstract
हरियाणा का क्षेत्रीय साहित्य अपनी मूल प्रकृति में जनजीवन की सादगी, वीरता, श्रमशीलता और आत्मबलिदान को प्रतिबिंबित करता है। यहाँ की लोककथाओं, रागनियों, सांगों (लोकनाट्य), वीरगीतों और समकालीन कविताओं में न केवल ग्रामीण जीवन के भाव चित्रित हैं, बल्कि उनमें गहरे राष्ट्रभक्ति भाव, विदेशी सत्ता का विरोध, और स्वतंत्रता की तीव्र आकांक्षा भी अभिव्यक्त होती रही है। यह साहित्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर समकालीन राष्ट्र निर्माण तक की चेतना को अभिव्यक्त करता है। हरियाणवी लोक साहित्य, विशेष रूप से रागनी शैली, में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों की वीरगाथाएँ गाई जाती रही हैं। ग्रामीण इलाकों में गाए जाने वाले लोकगीतों में गोरे साहबों के अत्याचार, खेती-बाड़ी की तबाही, और भारत माता की स्वतंत्रता की पुकार स्पष्ट दिखाई देती है। इन गीतों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम की भावना गांव-गांव, घर-घर तक पहुँची और आमजन को एकजुट किया।
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References
कुलदीप सिंह, यादव (2020) हरियाणा में राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम, आर्यन पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 289-296
कुलदीप सिंह, यादव (2020) हरियाणा में राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम, आर्यन पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 289-296
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