गाँधीजी के चिंतन में राष्ट्रवादी विचार: एक समालोचनात्मक अध्ययन
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Abstract
गाँधीजी के चिंतन में राष्ट्रवाद एक व्यापक और नैतिक दृष्टिकोण है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज के पुनर्निर्माण के लिए एक समग्र मार्गदर्शन प्रदान करता है। उनका राष्ट्रवाद सत्य, अहिंसा और आत्मनिर्भरता जैसे सिद्धांतों पर आधारित था, जो केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि सामाजिक समानता, धार्मिक सहिष्णुता और आर्थिक स्वावलंबन को भी प्राथमिकता देता था। गाँधीजी ने स्वराज को व्यक्तिगत और सामूहिक आत्मशक्ति के रूप में परिभाषित किया और इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण और स्वदेशी उत्पादों के प्रचार-प्रसार से जोड़ा। उनके विचारों ने न केवल उपनिवेशवाद का विरोध किया, बल्कि भारतीय समाज को आत्मनिर्भर और नैतिक रूप से मजबूत बनाने का प्रयास किया। गाँधीजी का राष्ट्रवाद समावेशी था, जो सभी वर्गों और समुदायों को एकजुट करता था और सांप्रदायिकता के विरोध में खड़ा था। आधुनिक समय में, उनके विचार पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता, और टिकाऊ विकास के लिए भी प्रासंगिक हैं। उनके चिंतन की आलोचनात्मक समीक्षा से यह स्पष्ट होता है कि उनकी दृष्टि आदर्शवादी होने के बावजूद, समकालीन चुनौतियों का समाधान प्रदान करने में सक्षम है। यह अध्ययन गाँधीजी के राष्ट्रवादी विचारों का मूल्यांकन करते हुए उनके नैतिक और व्यावहारिक प्रभाव को समझने का प्रयास करता है, जिससे भारतीय समाज और वैश्विक संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता सिद्ध होती है।
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